Friday, August 3, 2012

जनलोकपाल बिल बनाम अन्ना की राजनीतिक पार्टी

जनलोकपाल बिल बनाम अन्ना की राजनीतिक पार्टी 
टीम अन्ना ने लोकपाल आन्दोलन के जरिये भ्रष्टाचार मिटाने कि विदेशी व कांग्रेसी राजनीति कि चाल के कुचक्र में इस देश कि भोली भाली जनता का जबरदस्त भावनातमक शोषण किया जिसका इतिहास ६५ वर्ष के लोकतन्त्र में नहीं मिलता. खासकर नोजवानों कि नई कोंपलों
के साथ जेसा निर्मम प्रहार किया गया हैं जिसे इतिहास कभी भूला नहीं सकेगा. यह विडम्बना या यथार्त कहिये कि युवा समुदाय गाँधी को वर्षो से कोस रहा था तथा बहुत वर्षो बाद गांधीवाद में इन्ही युवाओं का विश्वाश लौटा था मगर इस आन्दोलन ने एक तरह से इतिहास को दोहराने का काम किया हैं ! दुसरी तरफ करोडों लोग भूख, अकाल, कुपोषण, दंगे, विस्थापन, निर्वासन, शोषण, लूट, भ्रष्टाचार, अन्याय, उत्पीडन, बाढ़, बीमारियों के शिकार हैं. एक अकेले भ्रष्टाचार दूर करने या कम करने के लिये लोकपाल बनाकर सभी समस्याओं का समाधान ढूंढने की राजनीति करने की रणनीति आधुनिक लोकतंत्रवादियों का ऐसा हथियार हैं जिसे साधारण जनता समझ ही नहीं सकी.
मेहनतकश वर्ग (किसान व मजदूर तबका) आजादी के इतने वर्ष गुजर जाने पर अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहा हैं. देश में आजादी के समय क्रषि पर लगभग ८०% से अधिक जनसँख्या निर्भर थी तथा उनका राष्ट्रीय आय में योगदान लगभग ६७% के आसपास था. आज लगभग ६६% जनसंख्या क्रषि पर निर्भर हैं तथा उनका राष्टीय आय में योगदान लगभग १२ % के आस पास ही रह गया हैं. क्या हम इस समस्या की गंभीरता को नहीं पहचानते ? क्या यह स्थति केवल भ्रष्टाचार के कारण उत्पन हुवी हैं? क्या इसके पीछे देश की जन-विरोधी सामाजिक-राजनेतिक नीतियाँ व व्यवस्था दोषी नहीं हैं?
टीम अन्ना तुम जवाबदेह कभी नहीं थी. अतः हम तुमसे माफ़ी माँगने को भी नहीं कहते पर यह जरुर कहते हैं कि तुमने विदेशी व कांग्रेस के साथ मिलकर मेहनतकश वर्ग के जो मुद्दे छिन लिये व जो धोखा किया हैं इतिहास उसे कभी माफ़ नहीं करेगा.
विशेष :
  • विदेशी प्रमाण-पत्र कि पात्रता ने टीम अन्ना के सदस्यों का लोकतन्त्र में कद बढ़ाया. उन्ही के सहारे कांग्रेस के पंजे कि मदद करने व फोर्ड के अजेंडे को लागू करने के लिये एक रणनीति के तहत यह टीम मैदान में उतारी गई थी. दोनों ही आका सबकुछ जानते हैं कि साधारण भारतीय जनता कि भावनाओ का मनोवैज्ञानिक तरीके से केसे इस्तेमाल किया जा सकता हैं. यह वास्तविकता भी वो जानते हैं कि सीधे ही कोन राजनीति की केन्द्रीय धुरी में केसे आने देगा !
     इस मेहनतकश जनता को लूटने के लिये मुख्य रूप से पूंजी दो तरह से आती हैं. दोनों के मालिक एक ही हैं. एक दान व सहायतादो के रूप में दुसरी निवेश- ऋण व आवारा के रूप. पहली भूमिका बनाती हैं की दुसरी किस तरह आसानी व अधिक लूट के लिये आये . दोनों ही साथ साथ चलती हैं व हमें पता ही नहीं चलता की जिस पूंजी को हम दान के रूप में स्वीकार करते हैं वह चंद दिनों पहले यंही से लुटी गई थी.
  • भारत  में जंहा आवारा पूंजी को आने में कुछ मुश्किल हुवी तो विदेशी दान पूंजी ने दाता के रक्षक रूप में सरकार की शह पर राजनीति शुरू की जिसे लोकपाल की राजनीति कहा जायेगा ! विदेशी पूंजी व उसकी हितचिन्तक इस सरकार ने भली भांति समझ लिया था की जनता जन-विरोधी सामाजिक-आर्थिक नीतियों के असंतोष से आक्रोशित व आन्दोलित हैं. जनता की आवाज संसद में भी गूंज उठी थी तब उसे भटकाने हेतु जन-विरोधी नीतियों से पैदा हुवे भ्रष्टाचार को एक मुधा बनाकर टीम अन्ना को पकड़ाया था. साथ में उन्होंने ही कहा की आप इसके लिये लोकपाल लाने हेतु संघर्ष करो. इतना तो आप भी जानते हों की भ्रष्टाचार तो पूँजीवाद के इंजन को चलाने का ग्रीस हैं !
  •  वर्तमान घोटाले व भ्रष्टाचार के कांड जन-विरोधी सामाजिक-आर्थिक नीतियों से पैदा हुवा था उससे मेहनतकश जनता का ध्यान हटाने के लिये लोकपाल को मुद्दा बनाया गया. अब जब अनशन समाप्त हुवा तो एक मात्र वामपंथियों ने इस आन्दोलन कि राजनीतिक परिणिति पर सवाल उठाये व कहा कि जब पार्टी ही बनानी थी तो इतने दिनों तक गैर-राजनीति कि राजनीति क्यों की ? सचमुच वे बधाई के पात्र हैं जो अब तो सच कहने लगे ! वैसे तो लोकतन्त्र में कोई भी राजनीतिक दल बना सकता हैं मगर टीम अन्ना तो राजनीति को ही गालियाँ दे रही थी !

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