ब्रह्मांड और विकसित देश
देखा जाया तो बहुत सारे सज्जन तो इस विषय को जानकर अपने अपने निजी या
सामुहिक निष्कर्ष पर पहुँच ही चुके हैं. वैसे तो 'शायद' पहले से ही ईश्वर
के अस्तित्व कोनकारने वाले ये भौतिकवादी, बुद्धिजीवी, चिंतक, लेखक, पत्रकार व विश्लेषक अब
तो बड़ी प्रमाणिकता के साथ कह रहें हैं कि वह ईश्वर की किसी व्यक्तिगत
कल्पना व अस्तित्वको कैसे स्वीकार कर सकते हैं! यह ब्रह्मांड यह सृष्टि किसी ईश्वर की रचना
नहीं बल्कि फिजिक्स के नियमों से उत्पन्न हुई तथा उसी के अनुरूप क्रियाशील
हैं. ये वो ही लोग हैं जो समझदार होकर भी ईश्वर को व्यक्ति के रूप मे देखते हैं तथा उसे सुप्रीम न्यायाधीश के रूप मे स्वर्ण सिंहासन पर बैठा मानते हैं.
दुसरी तरफ ये ही फिजिक्स के नियमों के प्रचारक होते हुए अनेक पुस्तके गोरखनाथ, कबीर, मीरा, रेदास, सूरदास, तुकाराम, अरोबिन्दो आदि अनेकों के कर्म मे ईश्वर का रूप देखकर उनकी जनमानस को देन तथा ऊनके उच्च कोटि के योगदान को प्रतिपादित करते हैं.
अब स्वर्ग जेसे देश स्विटज़रलेंड मे अरबों डॉलर के खर्च पर हो रहें कल्याणकारी व बीमारियाँ मिटाने को तत्पर एक शोध की उपलब्धि पर फूले नहीं समा रहें.आज के समय मे लोकतांत्रिक पूंजीपति देश बिना उनके आर्थिक हितों के इतना बड़ा निवेश कर ही नहीं सकते. इन्हें क्या मतलब हैं कि ब्रह्मांड का किस सीमा पर अंत हैं तथा
उसके बाद के नियम भी क्या क्या हैं?
दुसरी तरफ ये ही फिजिक्स के नियमों के प्रचारक होते हुए अनेक पुस्तके गोरखनाथ, कबीर, मीरा, रेदास, सूरदास, तुकाराम, अरोबिन्दो आदि अनेकों के कर्म मे ईश्वर का रूप देखकर उनकी जनमानस को देन तथा ऊनके उच्च कोटि के योगदान को प्रतिपादित करते हैं.
अब स्वर्ग जेसे देश स्विटज़रलेंड मे अरबों डॉलर के खर्च पर हो रहें कल्याणकारी व बीमारियाँ मिटाने को तत्पर एक शोध की उपलब्धि पर फूले नहीं समा रहें.आज के समय मे लोकतांत्रिक पूंजीपति देश बिना उनके आर्थिक हितों के इतना बड़ा निवेश कर ही नहीं सकते. इन्हें क्या मतलब हैं कि ब्रह्मांड का किस सीमा पर अंत हैं तथा
उसके बाद के नियम भी क्या क्या हैं?
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