कोयला घोटाले में पहले प्रधानमंत्री का स्तीफा व 142 कोल ब्लाक आवंटन रद्द हो फिर संसद बेठे . तबतक जनता व उसका साथ देने वाली पार्टियाँ सड़कों पर संघर्ष करती हें तो सबसे अच्छा कदम यही हें. अबब तक भाजपा व अन्य कोई भी पार्टी संसद का बहिष्कार करती
मुलायम जेसे गिरगिटों को कितनी बार साथ लेने या साथ यो जाने कि फोरी राजनेतिक कार्यनीति पर चलकर इस देश के ये क्रांतिकारी व परिवर्तनकारी दल व संगठन अपनी लोकतान्त्रिक या जनवादी रणनीति से किस कदर दूर जा रहें हें वास्तव में इन्हें अब पता भी नहीं होगा . शायद कार्यकर्ता अब तो उनसे सवाल भी नहीं पूछ्तें होंगे कि अब संगठन क्यों नहीं बना पा रहें हें .
हें तो जायज व लाजमी ही हें.
सरकार केवल संसद में वार्ता कि बात करके बच नहीं सकती हें. केग ने तो पहले ही दस्ताजों के आधार पर आंकलन करके रिपोर्ट तेयार कि हें अब अगर सरकार कोई नये तथ्य बताना चाहती हें, जिसकी जानकारी जरुरी हें, तो देश कि जनता के सामने भी वो अपना पक्ष रखे व बताएं . केवल संसद में बहस का बहाना करना यह बताता हें कि विपक्ष व जनता को वह मूल मुधे से भटकाना चाहती हें. वेसे तो उसकी नेतिक मर्यादा व आचारण रसातल पर पहुँच चुके हें हाँ इतना तो उसे याद होगा कि 2g स्पेक्ट्रम घोटाले में विगत वर्ष में राजा से स्तीफा ले लिया गया था. अब प्रधानमंत्री स्वयं पीछे क्यों हट रहें हें?
मुलायम सिंह ने कोयला विवाद की न्यायिक जांच करने का सुझाव दिया है और कुच्छ अन्य दल भी उनका साथ दे रहें हें. इस कदम से फिर अवसरवादीता कि बू आ रही हें ! यह सब बाद कि बाते हें जब वास्तव में लगे कि सरकार ने ऐसा कोई गंभीर घोटाला नहीँ किया. मगर इस प्रकरण में तो सरकार प्रथम धर्ष्टीय दोषी नजर आती हें . आंबटन के नाम पर खनन संपदा कि इस तरह बंदरबांट हवी हें जो किसी से छिपी नहीं रही. न्यायिक जाँच से पहले देश कि जनता के प्रति सरकार कि जवाब्दाही बनती हें कि वह सब खुलासा करे . देखा जाय तो सरकार स्वयं इसे जनता कि चोपाल में बहस के लिए आने नहीं देना चाह रही हें. वह जानबुझकर इस घोटाले को उलझाना चाहती हें. उसे यह पता हें कि स्तीफा देने के बाद वही दुर्गति होनी हें जो कि 2g स्पेक्ट्रम घोटाले में हवी थी. सरकार के मंत्रियो को दिखता हें कि कोयले में तो उनके मुंह कभी के काले हुवे थे तथा अब वे जनता को ना दिखे अतः प्रधानमंत्री स्तीफे से बच रहें हें.
मुलायम सिंह व अन्य दलों कि न्यायिक जाँच कि मांग सरकार को भी रास आती हें क्योंकि यह एक लम्बी व उबाऊ प्रक्रिया होती हें. इससे पहले तो सरकार स्वयं घोटाले से बच निकलती हें . यह वही मुलायम हें जिन्होंने पिछली बार परमाणु समझोते पर गिरती हुवी सरकार को दलाली करके बचाया था . उस वक्त सरकार को गिराने वाले भी इस बार मुलायम के साथ हें !
सरकार केवल संसद में वार्ता कि बात करके बच नहीं सकती हें. केग ने तो पहले ही दस्ताजों के आधार पर आंकलन करके रिपोर्ट तेयार कि हें अब अगर सरकार कोई नये तथ्य बताना चाहती हें, जिसकी जानकारी जरुरी हें, तो देश कि जनता के सामने भी वो अपना पक्ष रखे व बताएं . केवल संसद में बहस का बहाना करना यह बताता हें कि विपक्ष व जनता को वह मूल मुधे से भटकाना चाहती हें. वेसे तो उसकी नेतिक मर्यादा व आचारण रसातल पर पहुँच चुके हें हाँ इतना तो उसे याद होगा कि 2g स्पेक्ट्रम घोटाले में विगत वर्ष में राजा से स्तीफा ले लिया गया था. अब प्रधानमंत्री स्वयं पीछे क्यों हट रहें हें?
मुलायम सिंह ने कोयला विवाद की न्यायिक जांच करने का सुझाव दिया है और कुच्छ अन्य दल भी उनका साथ दे रहें हें. इस कदम से फिर अवसरवादीता कि बू आ रही हें ! यह सब बाद कि बाते हें जब वास्तव में लगे कि सरकार ने ऐसा कोई गंभीर घोटाला नहीँ किया. मगर इस प्रकरण में तो सरकार प्रथम धर्ष्टीय दोषी नजर आती हें . आंबटन के नाम पर खनन संपदा कि इस तरह बंदरबांट हवी हें जो किसी से छिपी नहीं रही. न्यायिक जाँच से पहले देश कि जनता के प्रति सरकार कि जवाब्दाही बनती हें कि वह सब खुलासा करे . देखा जाय तो सरकार स्वयं इसे जनता कि चोपाल में बहस के लिए आने नहीं देना चाह रही हें. वह जानबुझकर इस घोटाले को उलझाना चाहती हें. उसे यह पता हें कि स्तीफा देने के बाद वही दुर्गति होनी हें जो कि 2g स्पेक्ट्रम घोटाले में हवी थी. सरकार के मंत्रियो को दिखता हें कि कोयले में तो उनके मुंह कभी के काले हुवे थे तथा अब वे जनता को ना दिखे अतः प्रधानमंत्री स्तीफे से बच रहें हें.
मुलायम सिंह व अन्य दलों कि न्यायिक जाँच कि मांग सरकार को भी रास आती हें क्योंकि यह एक लम्बी व उबाऊ प्रक्रिया होती हें. इससे पहले तो सरकार स्वयं घोटाले से बच निकलती हें . यह वही मुलायम हें जिन्होंने पिछली बार परमाणु समझोते पर गिरती हुवी सरकार को दलाली करके बचाया था . उस वक्त सरकार को गिराने वाले भी इस बार मुलायम के साथ हें !
मुलायम जेसे गिरगिटों को कितनी बार साथ लेने या साथ यो जाने कि फोरी राजनेतिक कार्यनीति पर चलकर इस देश के ये क्रांतिकारी व परिवर्तनकारी दल व संगठन अपनी लोकतान्त्रिक या जनवादी रणनीति से किस कदर दूर जा रहें हें वास्तव में इन्हें अब पता भी नहीं होगा . शायद कार्यकर्ता अब तो उनसे सवाल भी नहीं पूछ्तें होंगे कि अब संगठन क्यों नहीं बना पा रहें हें .
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