Sunday, September 2, 2012

केग के अनुसार लगभग २ लाख करोड़ रूपये का घोटाला कोयला ब्लोक के आबंटन में हुवा हैं.


लगभग २ लाख करोड़ रूपये का घोटाला कोयला ब्लोक के आबंटन में हुवा हैं. इसका आंकलन केग ने सबकुछ छानबीन करके ही किया हैं. केग कि निष्पक्ष हैं आ उसकी भूमिका भी संदिग्ध नहीं हैं. सारे विभाग उसकि जाँच के दायरे में आते हैं. 


अब सरकार कहती हैं कि संसद चलनी चाहिए ! क्योंकि सरकार संसद में वार्ता व स्पष्टीकरक देना चाहती हैं. यह रास्ता बच के निकलने का ही हैं. यानी कि जो बाते सरकार अपने स्पष्टीकरण में रखे फिर उस पर वार्ता हो व मूल मुधा घोटाला होने का गोण जाय . इसका क्या यह मतलब नहीं हैं कि केग कि जाँच पड़ताल व छानबीन को ही पलीता लगा दिया जाय ? 


संसद, न्यायपालिक अपनी जगह पर सर्वोपरि हैं पर क्या कार्यपालिक बिल्कुल ही गोण हैं? उसकी अपनी भूमिका संविधान ने तय कर रखी हैं तब इस तरह के विरोधाभाष को सरकार द्वारा उभारना क्या यह नहीं बताता कि वह लोकतन्त्र को रसातल में जाने से रोकने में असमर्थ हैं. 


२४.८.१२ को केन्द्रीय मंत्री चिदम्बरम साहब कि तरफ से बयान आया कि सरकार को नुकसान केसे हो गया अभी तो कोयला ब्लोक आबंटन के बाद उन पर खनन कार्य भी नहीं शुरू हुवा . इस बार चिदम्बरम साहब बोलते हैं कि जब खाद्नों से कोयला निकाला ही नहीं गया तब देश को कोल ब्लोक आबंटन में जीरो नुकसान हुवा . पिछली बार 2 जी मामले में कपिल सिंबल साहब ने भी जीरो नुकसान होना बताया था. बाद में क्या हुवा ? यह सबसे छुपा हुवा भी नहीं रहा. उस घटना से सरकार ने ना तो सबक लिया हैं व ना ही लोकतांत्रिक नेतिकता का पालन कर रही हैं.  दोनों घोटालों में एक साधन गत चरित्र का मूल अंतर हें. 

()2g घोटाला अलग किस्म का हैं तथा वह तो आकाश का अनजाना खजाना था जो कि कभी समाप्त भी नहीं होगा.

() कोयला घोटाला प्राक्रतिक - भोतिक संसाधनों कि वह लुट हें जिसका पुनह भरण नहीं हो सकता हैं.

यह तो प्राक्रतिक-भोतिक सीमित संसाधन को कोड़ियो के भाव लुटाना हुवा . जिस आबंटन को ही केग गलत व प्रक्रियागत सोची समझी गलती बता रही हो तो आगे के सारे जवाब फीके ही हें. सरकारें खान, नदी, भू-जल, पर्वत, जंगल व जमीन के दोहन के लिए अवैध तरीके से बहुत छूट देती हैं, जिससे इन कारोबारों मे लगे व्यावसायियों को अरबों रूपये का मुनाफा होता है. वास्तव में आबंटन व ठेके लेने वाली अधिकांश कम्पनियां कागजी होती हैं तथा इनमे किस्म किस्म के दलाल नेताओ, पूंजीपतियों व बाहुबलियों के होते हैं. इनमे से अधिकांश संसाधनों कि लुट कि पुनह भरपायी नहीं हो पति हें, कोयला भी उनमे से एक हें. कोयला कांड में तो आबंटन हुवा हैं और नीलामी भी नहीं तब आबंटन केसे हो सकते हैं हम भ्रष्टव्यवस्था को देख व समझकर केवल अनुमान ही लगा सकते. केग ने तो दस्तावेजो सहित आंकलन करके ही रिपोर्ट दि हें तथा उसकी दरे भी वही रखी जो कि सरकारी थी . 


क्या भारत के लोग यह समझने में भी असमर्थ हैं कि घोटाला ब्लोक के आबंटन का हैं या उस पर खनन का? साधारण किसान भी बता देगा कि जमीन बेचने पर उसमे खेती हो या ना हो जमीन तो बिक चुकी हैं. अब मालिक जब मर्जी हो तब खेती करे या उसे बेचे ! इतने गंभीर मामले को जब सरकार के मंत्री पहले ही इतना हल्का में ले रहें हैं व बेतुकि बाते कर रहें तो संसद में आखिर ये कहना क्या चाहते हैं उसका आभास तो हो ही गया हैं. 

प्रधानमंत्री ने संसद में अपने शायराना अंदाज में खा कि, '' हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशीन जाने कितने सवालों की आबरू रखी''. इसका मतलब सीधा सा तो यही निकलता हें कि जो लोग सवाल पूछ रहे थे मेने तो अब तक नहीं बोलकर उन सवालों कि अबरू रखी हैं.

  प्रधानमंत्री स्तीफा के स्तीफे के बढ़ मध्यावती चुनाव होने पर कांग्रेस व भाजपा का बिलकुल अलग अलग व विपरीत आंकलन भी हो सकता हें. 

 (i)भाजपा सोच रही होगी कि यही वह समय हें जब सरकार को घेर कर स्तीफा देने के लिए मजबूर करे ताकि गुजर के चुनाव के साथ इसे भी जीता जा सके. साम्प्रदायिक जहर उगलने में भाजपा सबसे आगे हें तथा वह इसे भुना सकती हें. बड़े ताजुब कि बात हें कि इन्हें ह्सर्म कि बजाय इसमें गर्व होता हें ! 

(ii)वंही दूसरी तरफ सरकार ने सब कुछ शायद तय कर रखा हो कि पूरी जदोजहद के बाद में प्रधानमंत्री स्तीफा दे व बाद में राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री बनाकर संसद में हार जाय ताकि गुजरात के साथ मध्यावधि चुनाव हो जाय . कांग्रेस के लिये अन्ना व बाबा रामदेव आन्दोलन ने लगभग २ वर्ष तक वह सब कुछ कर दिया जिससे विपक्ष मजबूत नहीं हो सका. रही सही कसर सरकार ने जातिवाद व साम्प्रदायिकता बढाकर पूरी कर दि . आज कि परिस्थितियों में दलित व अल्पसंख्यक वर्ग का धुर्वीकरण कांग्रेस के पक्ष में वेसे ही होता लग रहा हैं. 


गुजरात के साथ मध्यावधि चुनाव कराने से कांग्रेस को साफ़ फायदा भी दिखता हैं कि मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं बन सकेंगे व बड़ी पार्टी भी कांग्रेस ही उभरेगी !

Saturday, September 1, 2012

कोयला घोटाले में पहले प्रधानमंत्री का स्तीफा व पुरे कोल ब्लाक आवंटन रद्द हो .

कोयला घोटाले में पहले प्रधानमंत्री का स्तीफा व 142 कोल ब्लाक आवंटन रद्द हो फिर संसद बेठे . तबतक जनता व उसका साथ देने वाली पार्टियाँ सड़कों पर संघर्ष करती हें तो सबसे अच्छा कदम यही हें. अबब तक भाजपा व अन्य कोई भी पार्टी संसद का बहिष्कार करती
 हें तो जायज व लाजमी ही हें.

सरकार केवल संसद में वार्ता कि बात करके बच नहीं सकती हें. केग ने तो पहले ही दस्ताजों के आधार पर आंकलन करके रिपोर्ट तेयार कि हें अब अगर सरकार कोई नये तथ्य बताना चाहती हें, जिसकी जानकारी जरुरी हें, तो देश कि जनता के सामने भी वो अपना पक्ष रखे व बताएं . केवल संसद में बहस का बहाना करना यह बताता हें कि विपक्ष व जनता को वह मूल मुधे से भटकाना चाहती हें. वेसे तो उसकी नेतिक मर्यादा व आचारण रसातल पर पहुँच चुके हें हाँ इतना तो उसे याद होगा कि 2g स्पेक्ट्रम घोटाले में विगत वर्ष में राजा से स्तीफा ले लिया गया था. अब प्रधानमंत्री स्वयं पीछे क्यों हट रहें हें?

मुलायम सिंह ने कोयला विवाद की न्यायिक जांच करने का सुझाव दिया है और कुच्छ अन्य दल भी उनका साथ दे रहें हें. इस कदम से फिर अवसरवादीता कि बू आ रही हें ! यह सब बाद कि बाते हें जब वास्तव में लगे कि सरकार ने ऐसा कोई गंभीर घोटाला नहीँ किया. मगर इस प्रकरण में तो सरकार प्रथम धर्ष्टीय दोषी नजर आती हें . आंबटन के नाम पर खनन संपदा कि इस तरह बंदरबांट हवी हें जो किसी से छिपी नहीं रही. न्यायिक जाँच से पहले देश कि जनता के प्रति सरकार कि जवाब्दाही बनती हें कि वह सब खुलासा करे . देखा जाय तो सरकार स्वयं इसे जनता कि चोपाल में बहस के लिए आने नहीं देना चाह रही हें. वह जानबुझकर इस घोटाले को उलझाना चाहती हें. उसे यह पता हें कि स्तीफा देने के बाद वही दुर्गति होनी हें जो कि 2g स्पेक्ट्रम घोटाले में हवी थी. सरकार के मंत्रियो को दिखता हें कि कोयले में तो उनके मुंह कभी के काले हुवे थे तथा अब वे जनता को ना दिखे अतः प्रधानमंत्री स्तीफे से बच रहें हें.

मुलायम सिंह व अन्य दलों कि न्यायिक जाँच कि मांग सरकार को भी रास आती हें क्योंकि यह एक लम्बी व उबाऊ प्रक्रिया होती हें. इससे पहले तो सरकार स्वयं घोटाले से बच निकलती हें . यह वही मुलायम हें जिन्होंने पिछली बार परमाणु समझोते पर गिरती हुवी सरकार को दलाली करके बचाया था . उस वक्त सरकार को गिराने वाले भी इस बार मुलायम के साथ हें !
  


मुलायम जेसे गिरगिटों को कितनी बार साथ लेने या साथ यो जाने कि फोरी राजनेतिक कार्यनीति पर चलकर इस देश के ये क्रांतिकारी व परिवर्तनकारी दल व संगठन अपनी लोकतान्त्रिक या जनवादी रणनीति से किस कदर दूर जा रहें हें वास्तव में इन्हें अब पता भी नहीं होगा . शायद कार्यकर्ता अब तो उनसे सवाल भी नहीं पूछ्तें होंगे कि अब संगठन क्यों नहीं बना पा रहें हें .